Thursday 15 March 2012

"इल्तिज़ा"..........मेरे दिल की ...........


बूँद-बूँद बरसे बदरा 

बीच-बीच आती फुहार 

छेड़खानी करती मुझसे 

जैसे हूँ मैं उसका पहला प्यार..........

गुदगुदी सी होती थी तब 


जब छूती थी वो मेरे तन को


तन जाते थे रोम स्पन्दन से 

हिला देते थे मेरे मन को............

चूमती गिरती बूँदें 

कपोल से अधर तलक

भीनी भीनी महक लिये 

बरस रहा ज़मीं पे फ़लक ........... 

कर रहा था शांत जैसे 

आसमाँ ज़मीं की तपिश

देखकर मन बाँवरा 

कर रहा गुज़ारिश...........

                                                                        

क्यूँ न तू आये?

क्यूँ न तू छाये?
क्यूँ तू रह रह कर? 

यूँ मुझे सताये?............
                                
बन के कारे प्रेम घन 
मन में मेरे बस जा 
कर दे शीतल हर इक कोना 
सुन ले मेरी  "इल्तिज़ा".....................

सुन ले मेरी  "इल्तिज़ा".....................

सुन ले मेरी  "इल्तिज़ा"..................... 

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