कल जख्म था जो अभी भरा नहीं
पर अहसास-ए-दर्द भी अब रहा नहीं
थोड़ी खुशी मिली तो राहत मिली
“आप अच्छे हो” सुनकर बाँहें खिली
जाने क्यूँ उन्हें कुछ अलग लगा ?
शायद दिखावा पसन्द है वो
तभी तो उन्हें कुछ अलग लगा
खैर,
जो भी हो मन तो खानाबदोश है
हर दम भटकता रहता है
सुकून तो मिलता है तारीफ़ पाकर
फ़िर भी ये डरता रहता है
हकीकत तो मन की परतों के
उघड़ने पर ही सामने आती है
“जी-ए-जीत” भी कुछ कम नहीं
पर अहसास-ए-दर्द भी अब रहा नहीं
थोड़ी खुशी मिली तो राहत मिली
“आप अच्छे हो” सुनकर बाँहें खिली
जाने क्यूँ उन्हें कुछ अलग लगा ?
शायद दिखावा पसन्द है वो
तभी तो उन्हें कुछ अलग लगा
खैर,
जो भी हो मन तो खानाबदोश है
हर दम भटकता रहता है
सुकून तो मिलता है तारीफ़ पाकर
फ़िर भी ये डरता रहता है
हकीकत तो मन की परतों के
उघड़ने पर ही सामने आती है
“जी-ए-जीत” भी कुछ कम नहीं
परतें और गहराती जाती है
परतें और गहराती जाती है ..................
और घनी होती चली जाती है...................
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