Thursday 2 June 2011

सफ़र



चल पड़ा मातृभूमि को 
छह मास का  सलाम कर
अपनी मंज़िल की डगर
पूर्णिमा को देखे बिना चला 
तय करने एक लम्बा सफ़र
तन्हा  - तन्हा सफ़र कटा 
आखिर मिला, 
एक  अनजान ,अजनबी ,
मगर हसीं हमसफ़र
ख्याल आया काटूँगा सफ़र 
हमसफ़र  'विद' शीतलहर
वो था शायद जयपुर शहर 
जब पहली बार मिली नज़र 
समय  बीता नज़रें बढ़ीं 
लेकिन बढ़ीं न नज़दीकी 
छुप छुप कर शरमा कर 'शर्मा' पर
मारे नज़रों से कातिल शर 
तभी लगा मुझे मानो
टूट पड़ा कोई कहर 
देखता रहा चोर निगाहों से
उठती मन में उमंग तो कभी लहर

स्वप्न संसार में आगाज़ हुआ 
ख्याली पुलों के निर्माण का 
आखिर मन ने कहा 
बस ! ठहर !
लेकिन दिल की लगी में 
क्या  बयां करूं 'जीत'
पता ही नही चलता 
कैसे समय जाता है गुजर
तभी तो अंग्रेज कवि ने
क्या लिखा था खोल दिल का 'शटर'
प्यार न जाने बरस महीना
ऋतु , घंटा मौसम और पहर ........











Sunday 22 May 2011

                                                            हमनवां 
अभी कुछ ज़ख्म है दिल पे ,  जो तेरे सितमों ने ढाये हैं !
शायर नहीं था मैं भी लेकिन , इकतरफा प्यार के सताये हैं !!

दिल में तेरे मेरा ही मुकाम होगा 
आज तो इनकार कल इकबाल होगा 
दीदार  करके ही आज खुश हूँ मैं 
लेकिन कल तेरे लबों पे इकरार होगा 

तेरे हर लफ़्ज़ पे मेरा ही नाम होगा 
देख के ज़माना भी  हमको हैराँ  होगा 
कि तुझ  से करता हूँ दिली मुहब्बत 
ये चर्चा हर लब-ओ-ज़ुबाँ होगा 

समझे न समझे तू इस लगी को
इसका भी शायद वही अंज़ाम होगा 
रिश्ता मजनूँ का जो लैला से था 
वही अपनी इस दास्तान का होगा 

आखिर जीत का जहाँ ही तेरा जहाँ होगा
गैरों के बारे मे सोच दिल परेशाँ होगा 
क्यूँ सताती हो मुझे ये जानकर भी 
कि "जीत" ही तेरा असली "हमनवां" होगा 


जितेन्द्र "जीत"
This video is about Great Sanskrit Grammarian Mahrishi Panini. The founder of Indian Classical Sanskrit Grammar . In this video I've added some photographs of a skit played by the students of DAV PS, Sec. 14, Gurgaon. I've used Photo-story to make it happen. please watch and enjoy......"Jayatu Samskritam" "Jayatu Bharatam"......

Saturday 21 May 2011

"मिलन"

 ""  मिलन   "

शीतल कोमल नन्ही-नन्ही 
शीतकाल में पावस बूँदें
प्रकृति हो रही प्रफुल्लित
चुपके-चुपके आँखें मूँदें
ठण्डी-ठण्डी सर्द हवा का
  प्यारा सा झोंका आया
दे  रहा असीम आनन्द
आके वो यूं मुसकाया
धीरे  -धीरे घिरे ये रैना
चाँद निखरता जाता
खुशी  तो खुशनुमा हो जाती 
मुझे चैन नहीं आता
दिखती  प्यारी झलक तेरी
पाने की तुझे चाहत होती
तू  तो नही मिलती मुझको 
चाँदनी ही से राहत होती
मिलेगी तू भी कभी  मुझे 
 चाँदनी हरदम यही कहती 
सोचता हूँ मिलेगी तू तब 
जब मिलेंगे आसमाँ धरती
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जितेन्द्र "जीत"