Tuesday 8 October 2013

**तुम्हारा नाम भी आयेगा मेरे नाम से पहले**

ढलेगी रात अब हर रोज़ जामे शाम से पहले,
करूँगा याद मैं तुझको मेरे हर काम से पहले

तेरा दीदार बस इक बार हो तो चाँद हम भूलें,
जहाँ भर की हँसी दे दूँ ग़मे पैग़ाम से पहले

खता की थी कोई या भूल थी जो हो गई शायद,
ख़ुदा पूछे मुझे मेरे हरेक इल्जाम से पहले

गुनाह लाखों किये मैंने मगर सारे तेरे सदके,
तुम्हारा नाम भी आयेगा मेरे नाम से पहले

अगर नाराज़ हो जाओ कभी भी “जीत” से जाना,
सलामत हौंसला रखना पिघलती शाम से पहले

जितेन्द्र "जीत"
**जल से हम कल बनायेंगे**

मदमस्त पवन, घनघोर घटा,
छाई बदली, सूरज को हटा ।
रिमझिम-रिमझिम बरसे बदरा,
तपती धरा पे कतरा-कतरा । 

सौंधी-सौंधी महक लिए,
मिट्टी जल संग बहने लगी,
नाले से बनकर नदी जल वो,
मन ही मन बूँद कहने लगी ।

सागर से उठी बादल मैं बनी,
संग पवन के मैं इठला के उड़ी ,
प्यासी धरती की तपन को देख,
बेबस ही बस मैं बरस पड़ी ।

अब बहती हूँ धारा बनकर,
नदियों में कल-कल-कल-कल कर,
निर्झर से बहती मैं झर-झर ,
लेती हूँ मैं सबका मन हर । 

मैं सुन्दरता इस धरती की,
पल-पल परिवर्तित प्रकृति की,
मुझ बिन सूना संसार लगे ,
मुझ बिन कोई इक पग न चले । 

तो प्रण करो संकल्प ये लो ,
वारि न व्यर्थ बहायेंगे ,
बूँद-बूँद संचित कर के,
जल से हम कल बनायेंगे । 

जल से हम कल बनायेंगे । 

जितेन्द्र *जीत*
**जवाँ दिल है,धड़कने दो |**


जवाँ दिल है, धडकनें भी,
ये धड़केंगी,
धड़कने दो |
नसों में लावा बहता है,
लहू बन के,
फड़कने दो ||

वतन के काम आएगा,
हर एक कतरा,
एक-एक बूँद ,
बंधी बेड़ी-जंज़ीरों को,
हौंसलों से,
तड़कने दो ||

उठो जागो कमर बाँधो,
विजय पथ पे,
अग्रसर हो |
खटकते हो गर दुश्मन की,
आँखों में,
खटकने दो || 

नफ़रत की आँधियों में,
गोलियों की,
हैं बौछारें |
शहादत की बिजलियों को,
आज खुल के,
कड़कने दो ||

सलामी सौ सौ तोपों की,
याद में,
वीर शहीदों की
हिन्द के नौजवानों की,
बुलंद होकर,
गरजने दो ||


जवाँ दिल है धडकनें भी,
ये धड़केंगी,
धड़कने दो |
नसों में लावा बहता है,
लहू बन के,
फड़कने दो ||

Tuesday 27 March 2012

इम्तिहान

आज मेरा था इक  इम्तिहान
किया गुड़गाँव से दिल्ली प्रस्थान
पहुँचा जब परीक्षा केंद्र
तब आई मेरी जान में जान

क्यूंकि

एक तो मैं कुछ लेट था पहले
फ़िर सेंटर ढूँढने में बड़े पापड़ बेले
इक अंकल मिले अजीब
मैं गया उनके करीब

पूछा “अंकल कहाँ का है ये पता ?”
बोले “लिख्या के है पढ़ के बता “
मैंने कहा -अंकल जी लिखा है “लोनी“
वो बोले –बेटा मन्ने तो  पतो कोनी .....

बेटा ! मैं तो हूँ हरियाणे का
तेरे किसी काम नी आणे का

पहले तो थोड़ा गुस्सा चढा
फ़िर मैं थोड़ा आगे बढ़ा

वहाँ एक युवती दिखी
वो बोली  –"मे आई हेल्प यू ?"
मैं बोला –"आई विल मैनेज ,थेंक्यू ......."

१० मिनट पहले की मेट्रो की याद आई
जब एक भाई की तबियत से हुई पिटाई
परीक्षा शुरू होने में १५ मिनट बचे थे
उस टाइम घड़ी में सवा दस बजे थे

“भैया कहाँ जाओगे ? मैं छोड़ दूँ ...”
एक बूढ़े ने टेर लगा थोड़ा दम लिया
मैंने निराशा से कहा वापस गुड़गांव
पेपर तो कब का शुरू हो लिया ....

फ़िर भी

मैंने उसे पता बताया
उसने थोड़ा दिमाग लगाया
तेज़ी से रिक्शा दौड़ाया
३ मिनट में सेंटर पहुंचाया

मैं देखकर  हैरान था और था कुछ परेशान
दस रुपये देकर कहा रहेगा आपका अहसान

बूढा बोला -अहसान गया भाड़ में
नोट निकालो पचास का .....
सुबह-सुबह बोहनी का टाइम है
क्या फायदा बकवास का

मैंने कहा थोड़ी सी तो दूरी थी
रिक्शे में आना मेरी मजबूरी थी 
वो बोला परीक्षा भी तो ज़रूरी थी
इतने ही लगेंगे ये मेरी मजदूरी थी ...

आज का दिन भी क्या दिन था , हे भगवान
इससे अच्छा तो सोता घर में चद्दर तान

जीतने चला था जंग सरकारी
हो गए मेरे फिसड्डी हाल 
बन के रह गया मैं
"ऑफिस-ऑफिस" का "मुसद्दी लाल"