जब थामे वो अश्कों को
वक्त हो जाता है " हसीं "
दे एहसास अपनेपन का
अश्क हो जाता है " हँसी "
भूलना चाहता हूँ उसको
पल पल भीगी " पलकें लिए "
लाख कोशिश कर मैं हारा
भुला ना पाया इक "पल के लिए "
इस इश्क के जहाँ में
शायद " काफ़िर " हो गया हूँ
कभी लगता है मैं ज़ुदा हूँ
या उस "का फ़िर " हो गया हूँ........................
शायद .... शायद..... हाँ..
वक्त हो जाता है " हसीं "
दे एहसास अपनेपन का
अश्क हो जाता है " हँसी "
भूलना चाहता हूँ उसको
पल पल भीगी " पलकें लिए "
लाख कोशिश कर मैं हारा
भुला ना पाया इक "पल के लिए "
इस इश्क के जहाँ में
शायद " काफ़िर " हो गया हूँ
कभी लगता है मैं ज़ुदा हूँ
या उस "का फ़िर " हो गया हूँ........................
शायद .... शायद..... हाँ..
No comments:
Post a Comment