आज मेरा था इक इम्तिहान
किया गुड़गाँव से दिल्ली प्रस्थान
पहुँचा जब परीक्षा केंद्र
तब आई मेरी जान में जान
क्यूंकि
एक तो मैं कुछ लेट था पहले
फ़िर सेंटर ढूँढने में बड़े पापड़ बेले
इक अंकल मिले अजीब
मैं गया उनके करीब
पूछा “अंकल कहाँ का है ये पता ?”
बोले “लिख्या के है पढ़ के बता “
मैंने कहा -अंकल जी लिखा है “लोनी“
वो बोले –बेटा मन्ने तो पतो कोनी .....
बेटा ! मैं तो हूँ हरियाणे का
तेरे किसी काम नी आणे का
पहले तो थोड़ा गुस्सा चढा
फ़िर मैं थोड़ा आगे बढ़ा
वहाँ एक युवती दिखी
वो बोली –"मे आई हेल्प यू ?"
मैं बोला –"आई विल मैनेज ,थेंक्यू ......."
१० मिनट पहले की मेट्रो की याद आई
जब एक भाई की तबियत से हुई पिटाई
परीक्षा शुरू होने में १५ मिनट बचे थे
उस टाइम घड़ी में सवा दस बजे थे
“भैया कहाँ जाओगे ? मैं छोड़ दूँ ...”
एक बूढ़े ने टेर लगा थोड़ा दम लिया
मैंने निराशा से कहा वापस गुड़गांव
पेपर तो कब का शुरू हो लिया ....
फ़िर भी
मैंने उसे पता बताया
उसने थोड़ा दिमाग लगाया
तेज़ी से रिक्शा दौड़ाया
३ मिनट में सेंटर पहुंचाया
मैं देखकर हैरान था और था कुछ परेशान
दस रुपये देकर कहा रहेगा आपका अहसान
बूढा बोला -अहसान गया भाड़ में
नोट निकालो पचास का .....
सुबह-सुबह बोहनी का टाइम है
क्या फायदा बकवास का
मैंने कहा थोड़ी सी तो दूरी थी
रिक्शे में आना मेरी मजबूरी थी
वो बोला परीक्षा भी तो ज़रूरी थी
इतने ही लगेंगे ये मेरी मजदूरी थी ...
आज का दिन भी क्या दिन था , हे भगवान
इससे अच्छा तो सोता घर में चद्दर तान
जीतने चला था जंग सरकारी
हो गए मेरे फिसड्डी हाल
बन के रह गया मैं
"ऑफिस-ऑफिस" का "मुसद्दी लाल"
सार्थक, सुन्दर सृजन, बधाई.
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग" meri kavitayen" की नवीनतम प्रविष्टि पर भी पधारें.