हमनवां
जितेन्द्र "जीत"
अभी कुछ ज़ख्म है दिल पे , जो तेरे सितमों ने ढाये हैं !
शायर नहीं था मैं भी लेकिन , इकतरफा प्यार के सताये हैं !!
दिल में तेरे मेरा ही मुकाम होगा
आज तो इनकार कल इकबाल होगा
दीदार करके ही आज खुश हूँ मैं
लेकिन कल तेरे लबों पे इकरार होगा
तेरे हर लफ़्ज़ पे मेरा ही नाम होगा
देख के ज़माना भी हमको हैराँ होगा
कि तुझ से करता हूँ दिली मुहब्बत
ये चर्चा हर लब-ओ-ज़ुबाँ होगा
समझे न समझे तू इस लगी को
इसका भी शायद वही अंज़ाम होगा
रिश्ता मजनूँ का जो लैला से था
वही अपनी इस दास्तान का होगा
आखिर जीत का जहाँ ही तेरा जहाँ होगा
गैरों के बारे मे सोच दिल परेशाँ होगा
क्यूँ सताती हो मुझे ये जानकर भी
कि "जीत" ही तेरा असली "हमनवां" होगा
जितेन्द्र "जीत"