Sunday 22 May 2011

                                                            हमनवां 
अभी कुछ ज़ख्म है दिल पे ,  जो तेरे सितमों ने ढाये हैं !
शायर नहीं था मैं भी लेकिन , इकतरफा प्यार के सताये हैं !!

दिल में तेरे मेरा ही मुकाम होगा 
आज तो इनकार कल इकबाल होगा 
दीदार  करके ही आज खुश हूँ मैं 
लेकिन कल तेरे लबों पे इकरार होगा 

तेरे हर लफ़्ज़ पे मेरा ही नाम होगा 
देख के ज़माना भी  हमको हैराँ  होगा 
कि तुझ  से करता हूँ दिली मुहब्बत 
ये चर्चा हर लब-ओ-ज़ुबाँ होगा 

समझे न समझे तू इस लगी को
इसका भी शायद वही अंज़ाम होगा 
रिश्ता मजनूँ का जो लैला से था 
वही अपनी इस दास्तान का होगा 

आखिर जीत का जहाँ ही तेरा जहाँ होगा
गैरों के बारे मे सोच दिल परेशाँ होगा 
क्यूँ सताती हो मुझे ये जानकर भी 
कि "जीत" ही तेरा असली "हमनवां" होगा 


जितेन्द्र "जीत"

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर ग़ज़ल है.............



    जो भी गुज़रा दिल की रहगुज़र से

    निशान ए पा अपने छोड़ गया

    हर एक जख्म इस कदर गहरा था कि

    ता उम्र टीस बन रिसता रह गया

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