Saturday 21 May 2011

"मिलन"

 ""  मिलन   "

शीतल कोमल नन्ही-नन्ही 
शीतकाल में पावस बूँदें
प्रकृति हो रही प्रफुल्लित
चुपके-चुपके आँखें मूँदें
ठण्डी-ठण्डी सर्द हवा का
  प्यारा सा झोंका आया
दे  रहा असीम आनन्द
आके वो यूं मुसकाया
धीरे  -धीरे घिरे ये रैना
चाँद निखरता जाता
खुशी  तो खुशनुमा हो जाती 
मुझे चैन नहीं आता
दिखती  प्यारी झलक तेरी
पाने की तुझे चाहत होती
तू  तो नही मिलती मुझको 
चाँदनी ही से राहत होती
मिलेगी तू भी कभी  मुझे 
 चाँदनी हरदम यही कहती 
सोचता हूँ मिलेगी तू तब 
जब मिलेंगे आसमाँ धरती
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जितेन्द्र "जीत"

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